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मुलाकात -17-Apr-2023

कविता -मुलाकात

चलता गया
चलता रहा 
मिलता रहा
हर लोग से,
जीवन सफ़र
कटता रहा
मुड़ता गया
हर मोड़ पे,

जितने मिले
जैसे मिले
अपने मिलें
या गैर हो,
कहता गया
देता गया
शुभकामना
सब खैर हो ,


आता  गया 
फिर मोड़ था
डगमग डगर
का अंत वह,
डूबता दिन 
था अंधेरा
आंधी चली 
अब मंद बह,

दिखता नही
था सामने
उठता नहीं
अब पांव था,
टूटता अब
सांस भारी
उजड़ा हुआ
सा ठांव था,

देखते ही
सामने थी
एक काली
छाया खड़ी,
हाथ पकड़े
दे सहारा
चुपचाप ले
मुझको चली,

जीवन सफ़र
के अंत में
अंतिम यही
मिलना रहा,
अपना सभी
या गैर सब
सबको यही
कहना रहा,

अच्छा रहा
सच्चा रहा
वह मौत की
अंतिम घड़ी,
ना चाह थी
ना हाय थी
ना दुःख से
जीवन भरी। 

रचनाकार- रामवृक्ष बहादुरपुरी,अम्बेडकरनगर। 



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3 Comments

Abhinav ji

18-Apr-2023 09:12 AM

Very nice 👍

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शानदार

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अदिति झा

17-Apr-2023 06:38 PM

Nice 👍🏼

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